-------------- मुझे पुनः पुनः छिद्रान्वेषण पर लौटना ही पड़ता है ---
जो न कह सके सत्य उठा सिर,
उसको मानव कौन कहे | ......की मेरी अवधारणा मुझे इस कृतित्व में खींच ही लाती है ..
" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- न कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते, 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... । मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम व हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते । आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है छिद्रान्वेषण का एक नवीन तम उदाहरण -----
जो न कह सके सत्य उठा सिर,
उसको मानव कौन कहे | ......की मेरी अवधारणा मुझे इस कृतित्व में खींच ही लाती है ..
" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- न कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते, 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... । मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम व हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते । आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है छिद्रान्वेषण का एक नवीन तम उदाहरण -----
जिस जन जन के लिए समाज है, कला है, संस्कृति है वह जन-जन क्या सिर्फ अंग्रेज़ी समझता है जो भारत में रहने. खाने वाले लोग अपनी कलाकृतियों को पेंटिंग कहते हैं एवं नाम अंग्रेज़ी में रखते हैं |
प्रस्तुत चित्र में कलादीर्घा में रखे गए चित्रों के नाम ....अ पाथ टू ट्रीस...रिटर्निंग होम...फारेस्ट विथ एंटीलोप्स....डस्क.....एक्रेलिक वाटर कलर ...आयल कलर मीडियम....पैटर्न पेंटिंग्स...लेयर्ड वर्क्स ......ये सब क्या है ...... कौन सी भाषा है, कहाँ की भाषा है , क्यों है .....
यह हिन्दी, हिन्दुस्तान व भारतीय भाव की कमी व कम समझ का परिणाम है क्योंकि कला व संस्कृति के मूल में उन्हें भारतीय भाव व भाषा का अनुसरण तो करना ही चाहिए, सम्पूर्ण प्रभाव व भाव को जन जन, में सम्प्रेषण के निमित्त.... न कि चंद छद्म ज्ञानियों हेतु |
अब प्रस्तुत नारी कलाकृति की बात करें ....चित्र में नारी का अभंग, अंगभंग , उल-जुलूल रेखांकन में कौन सा सशक्तीकरण है ....कौन सी बेड़ियों की जकडन का प्रतीक है , कौन सी अंतस्थल की अदम्य ऊर्जा प्रदर्शन है | उस मूर्खतापूर्ण चित्रांकन का इस नारी रूपांकन , सशक्तीकरण, अंतस्थल की ऊर्जा प्रदर्शन से कोइ तुलना है ...
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----यह छिद्रान्वेषण का महत्त्व है ....इसी के द्वारा हम बात की गहराई को समझ सकते हैं.....|