सोमवार, 22 अगस्त 2011

वंशी नहीं बजा पायेंगे----ड़ा श्याम गुप्त

        


 







 


गोवर्धन गिरिधारी ने जब, गिरि गोधन को उठाया होगा ।
मन में एक बार तो हरि के, एसा भी कुछ आया होगा।
 
गीता ज्ञान दिया गोविन्द ने, मन कुछ भाव समाया होगा |
नटवर ने कुछ सोचा होगा, मन कुछ भाव बसाया होगा।।

युग युग तक ये कर्म कथाएँ ,जन मानस में पलती रहें।
तथा
कर्म, कर्मों की गति पर,संतति युग युग चलती रहें ।

कर्म भाव को धर्म मानकर ,जनहित कर्म ध्वजा फहरे ।
परहित भाव सजे जन जन में,मन यह भाव सुहाया होगा ।।

सुख समृद्धि पले यह अंचल, युग युग यह युग-धर्म रहे।
दुःख दारिद्र्य दूर हों सारे, मन श्रम -ज्ञान का मर्म रहे ।

भक्ति, ज्ञान ,विज्ञान, साधना, में रत रहें सभी प्रियजन ।
सत्-आराधन की महिमा का, मन में भाव सजाया होगा।।

रूढि, अंध श्रृद्धा को छोड़कर, गोवर्धन पूजन अपनाया ।
गर्व चूर करने सुरपति का,गोवर्धन कान्हा ने बसाया।

चाहे जितना कुपित इंद्र हो, चाहे जितनी वर्षा आये।
नहीं तबाही अब आयेगी,मन दृढ भाव बनाया होगा।।

कान्हा,राधा, सखी-सखा मिल,कार्य असंभव करके दिखाया।
सात दिवस में सभी ग्राम को, गोवर्धन अंचल में बसाया।

कुशल संगठन दृढ संकल्प,श्रमदान का एसा खेल रचा।
कहते कान्हा ने उंगली पर गोवर्धन को उठाया होगा ।।

वही देश वासी कान्हाके,भूल गए हैं श्रम-आराधन
भक्ति श्रृद्धा का भक्तों की,करते रहते केवल दोहन


ताल, सरोवर, नदी, गली सब, कूड़े-करकट भरे पड़े हैं।
जिन्हें कृष्ण-राधा ने मिलकर,निज हाथों से सजाया होगा।।

कर्म भावना ही न रही जब, धर्म भाव कैसे रह पाए।
दुहते धेनु अंध-श्रृद्धा की,पत्थर पर घृत -दुग्ध बहाए।

रूढि, अन्ध श्रृद्धा में जीते, दुःख-दारिद्र्य हर जगह छाया।
जिसे मिटाने कभी 'श्याम' ने ,जन अभियान चलाया होगा।।

आज जो गिरिधारी आजायें, कर्मभूमि की करें समीक्षा।
निज कान्हा की कर्मभूमि की, राधारानी करें परीक्षा।

अश्रु नयन में भर आयेंगे, वंशी नहीं बजा पायेंगे
कर्म साधना भूलेंगे सब, कभी मन में आया होगा ॥ 
                                                                                              ----चित्र साभार ..

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

छिद्रान्वेषण -तथ्य व उदाहरण व महत्त्व ---डा श्याम गुप्त ....



" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है  छिद्रान्वेषण का एक उदाहरण -----
 -----पिछले दिनों  एक समाचार था  --- आर्ट ऑफ़ लिविंग के श्री रविशंकर, अन्ना हजारे, किरण बेदी , स्वामी अग्निवेश आदि विभिन्न महानुभावों ने मिलकर एक भ्रष्टाचार निरोधी संस्था बनाई , जो जन -जन में भ्रष्टाचार के विरुद्ध ' जन आन्दोलन ' चलाने का कार्य करेगी । सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार किस तरह देश-समाज -विश्व को खा रहा है और उसे हटाने की महती आवश्यकता है । यह पुनीत कार्य अवश्य ही एक अत्यावश्यक कार्य है | इन सभी महानुभावों ने मिल कर एक संस्था बनाई है --- " इंडिया अगेंस्ट करप्शन "....
---अब इतने महत्वपूर्ण व महान कृतित्व में क्या छिद्रान्वेषण की बात हो सकती है ?---हो सकती है , देखिये इतने अच्छे कार्य का किस तरह महत्त्व नष्ट हो सकता है, ----
...जिस जन जन के लिए यह अभियान चलाया जारहा है वह जन-जन क्या सिर्फ अंग्रेज़ी समझता है जो संस्था का नाम अंग्रेज़ी में रखा गया है .
......हमें करप्शन तो इंडिया से हटाना है तो वही करप्शन के अगेंस्ट कैसे हो सकता है ? क्या यह नाम हिन्दी -राष्ट्र भाषा में -भ्रष्टाचार निरोधी संस्था, हम भ्रष्टाचार नहीं करेंगे , जन जन को जगायेंगे-भ्रष्टाचार हटायेंगे ....आदि क्यों नहीं हो सकते थे ?
-------यह हिन्दी,हिन्दुस्तान भारतीय भाव की कमी कम समझ का परिणाम है क्योंकि इस के मूल में अधिकतर शासन व्यवस्था द्वारा सताए , प्रशानिक लोग हैं...पर किसी अच्छे कार्य के लिए उन्हें भारतीय भाव का अनुसरण तो करना ही चाहिए , सम्पूर्ण प्रभाव भाव को जन जन , सामान्य जन में सम्प्रेषण के निमित्त.... ।----यह  छिद्रान्वेषण का महत्त्व है ....इसी के द्वारा हम बात की गहराई को समझ सकते हैं.....