मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण--कविता केवल कला ही नहीं विज्ञान भी है.....डा श्याम गुप्त.....


                             कविता केवल एक कला ही नहीं अपितु विज्ञान भी है, उच्चतम विज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान , जिसमें कवि-साहित्यकार को  सामयिक, एतिहासिक व  आनेवाले समय के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक सत्यों व तथ्यों का तर्कपूर्ण, सत्य व यथातथ्य उदघाटन करना होता है | विज्ञान क्या है...सत्य की खोज,सत्य का निरूपण व सत्य का तर्कपूर्ण कथ्यांकन | अतः काव्य के कलापक्ष के साथ साथ उसके भावपक्ष का गहन महत्व होता है | यथा.... विश्वमान्य सत्य, वैज्ञानिक सत्य व तथ्य, गहन सामाजिक तत्वविचार ,अर्थार्थ, अर्थ-प्रतीति आदि |
              वस्तुतः कविता लिखने का मूल अभिप्रायः ही भाव-संवेदना व सामाजिक-सरोकार व सांस्कृतिक कृतित्व है | अतः भाव-दोषों के दूरगामी प्रभाव होते हैं | कलापक्ष  तो सहायक है, भाव सम्प्रेषण का  जन रंजक पक्ष है | वह क्लिष्ट , गुरु गाम्भीर्य युक्त न होकर जन जन के समझ में आने वाला सहज व सरल ही होना चाहिए |  परन्तु शब्दों का चयन व उनकी अर्थ  व भाव सम्प्रेषणता सहज व स्पष्ट होनी चाहिए अन्यथा गंभीर भाव त्रुटियाँ  रह जाने का भय रहता है | यथा ..हम कुछ उदाहरण देखेंगे...
उदाहरण १- एक सुप्रसिद्ध गीतकार के  सुप्रसिद्ध गीत की पंक्तियाँ देखिये---
           "  जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना ,
             अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाए || "
कितनी सहज व सरल लगती हैं ..यद्यपि कवि का सुमंतव्य सारे जहां को दीपित करने का है परन्तु  छिद्रान्वेषण  करने पर ....भाव क्या निकलता है ....की मनुष्य यदि दिए जलाए तो उसे सारी धरा के अंधेरों को मिटाने का प्रयत्न करना चाहिए " 'वाक्य ..'रहे ध्यान इतना'.. चेतावनीपूर्ण वाक्य लगता है कि ..यदि वह यह नहीं कर सकता तो ..न करे...न जलाए....क्या वास्तव में मानव में इतनी क्षमता है कि वह सम्पूर्ण धरा का अन्धेरा मिटा सके ...यह तो ईश्वर ही कर सकता है ..| जबकि ....माना हुआ सत्य यह है कि....'इक दिया है बहुत रोशनी के लिए '...अर्थात व्यक्ति जो कुछ भी, जितना भी  शुभकर्म कर सके, उसे करते जाना चाहिए, बिना  फल की इच्छा के  | यदि उसने एक कोना भी उजियारा कर दिया तो वह अन्य के लिए स्वयं उदाहरण की लकीर बनेगी.....यहाँ तार्किक-तथ्यांकन की त्रुटि है |
उदाहरण -२-.. ""तितली भौरों की बरात, निकल रही है, 
                        बगिया रूपी कानन से "
.....बगिया व कानन दोनों ही समानार्थक हैं शब्द हैं अतः यहाँ पर शब्दावली -दोष है |
उदाहरण -३-.. " उषा जा न पाए, निशा आ न पाए |".....यद्यपि कवि का भाव है कि ...ज्ञान नष्ट न हो अज्ञान न फ़ैल पाए ....परन्तु विश्वमान्य सत्य के विरुद्ध शब्दावली है ...उषा के जाने पर प्रकाश आता है, सूर्य उदय होता है , निशा नहीं आती वह तो उषा के आने से पहले होती है उषा द्वारा दूर कर दी जाती है | यहाँ विश्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य की उनदेखी की गयी है |


शनिवार, 3 दिसंबर 2011

ऍफ़ डी आई पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया........डा श्याम गुप्त


                                     खुदरा बाजार में ऍफ़ डी आई  पर विरोध  पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया  का कथन है कि.... ...मौजूदा आपूर्ति श्रृंखला में कई खामियां हैं ,किसानों को उपज का उचित दाम नहीं मिलता....आपूर्ति-तंत्र में अक्षमता , बिचौलिआपन तथा बरबादी है ...कोल्ड स्टोरेज बगैरह की व्यवस्था नहीं है.....आदि आदि....
            यदि एसा है तो यह तो आपकी सरकार की ही अक्षमता है | उसे ठीक करने के उपाय की बजाय आप विदेशियों को अपने घर में घुसा लेंगे क्या |   फिर तो राजनीति में, नेताओं के चरित्र में, मंत्रियों  के कार्यों में जाने कितनी खामियां हैं ...फिर क्यों हम भारतीय लोगों, नेताओं को ही सत्ता पर काविज़ करें , क्यों न विदेशियों को ही चुनाव में खड़ा होने का न्योता दें, क्यों न उन्हें ही नेता, मंत्री, मुख्य-मंत्री, राष्ट्रपति बनने का न्योता व मौक़ा दें ताकि देश की ये सारी समस्याओं का सरल, बिना कष्ट किये, बिना कठिनाई के  हल  होजाय |
           आप सब लोगों का क्या ख्याल है.

रविवार, 13 नवंबर 2011

छिद्रान्वेषण -----तरक्की का नया नज़रिया ....पढाई आवश्यक नहीं ......डा श्याम गुप्त ..

छिद्रान्वेषण -----


               आखिर क्या कहना चाहते हैं हम ....इस प्रकार के आलेख रूपी  समाचार से.......क्या समझाना चाहते हैं नई पीढी को...कोमल माटी -तन- मन बच्चों को  ....क्या सन्देश देना चाहते हैं......की क्लास बंक करें , पढाई बीच में छोड़कर अन्य सब्ज-बागों  में मन लगाएं ...... नियमित -व पूरी स्कूली-कालि ज की शिक्षा का कोइ लाभ नहीं है......

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण.....राष्ट्रपति...महिलायें व समाज..... डा श्याम गुप्त.....

                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           

बिंदु-१ .....           महिलायें  सामाजिक बुराई के खिलाफ आगे आयें ....निश्चय ही अच्छा नारा है .....परन्तु यदि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च स्तर की महिलायें  अपना नाम ... प्रतिभा  देवीसिंह पाटिल....एवं अभी हाल में ही चिकित्सा वि विद्यालय की कुलपति पद पर सुशोभित ...डा सरोज चूडामणि  गोपाल ..... अर्थात ....पति (..देवीसिंह ...व गोपाल) के नाम ....के बिना अपनी स्वतंत्र  पहचान ( आइडेंटिटी ) नहीं स्थापित कर सकती हैं तो ......हम क्या अपेक्षा रखें स्वयं महिलाओं से .?? ........क्या यह नाम -स्वरुप ...प्रेम व समर्पण के वशीभूत रखा जाता है  या पारिवारिक, परम्परा व पति के दबाव स्वरुप .....?
बिंदु-२.....               क्या माननीय राष्ट्रपति महोदया ...या हिन्दी प्रदेश के ह्रदय प्रदेश की माननीय मुख्य मंत्री  या वे सभी महान महिलायें, महिला संगठन , महिला कालेज के पदाधिकारी व छात्र-संगठन , महान पूर्व छात्राएं व महान छात्राएं .......उदघाटन पट्ट को देश की भाषा  राष्ट्र-भाषा हिन्दी में नहीं करा सकती थीं जो गुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेज़ी में लिखा गया |

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

छिद्रान्वेषण ------ कौन महत्वपूर्ण है ....डा श्याम गुप्त.....


  छिद्रान्वेषण------                              
------- कौन महत्वपूर्ण है आपके लिए.....अखवार के लिए ..??????


शाहरुख - करीना - सिनेमा का विज्ञापन --जिनका चित्र समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर पूरे पेज पर है...............


              या ..............................
  




श्री कृष्ण ----जिनका चित्र दूसरे पेज पर है ...चौथाई  पृष्ठ पर  है ......
                                                                                                                                                                                                                          

एवं .......



राउडी राठौर .....जिसका चित्र पूरे पृष्ठ पर है ......



या.....
प्रदेश  की मुख्यमंत्री ....जिनका चित्र अंदर के पेज पर .....चौथाई  पृष्ठ पर है .....

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण ....दीप-पर्व एवं पटाखे व आतिशबाजी और प्रदूषण ....डा श्याम गुप्त ..

              आजकल  यह ट्रेंड बन् चला है कि ज़रा सा--- तथाकथित वैज्ञानिक विचार वाला व्यक्ति, समूह , संस्था कुछ पाश्चात्य बातें पढ़ता है ..विशेषकर यदि वे हिन्दू व भारतीय संस्कारों , रीति-रिवाजों, पर्वों , विधियों के बारे में हैं तो--- तुरंत उनमें खामियां निकालने लगते हैं एवं बुराई की भांति  प्रचार करने में जुट जाते हैं | अभारतीय संस्कृति वाले लोग तो इसमें सम्मिलित होते ही हैं ..कुछ तथाकथित आधुनिक ,स्व-संस्कृति पलायनवादी लोग भी जोर-शोर से इस में लग जाते हैं |

आतिशबाजी- सिटी हाल , बाल्टीमोर-यूं एस ऐ  ( चित्र -गूगल - साभार )
        यही बात दीप-पर्व पर पटाखों, आतिशबाजी को लेकर देखी जारही है |
                     यह एक गलत धारणा है कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है ....आतिशबाजी युगों से होरही है और प्रदूषण नहीं होता था ..न हुआ ..आतिशबाजी के प्रकाश, धुंए, ऊष्मा व ध्वनि और रसायनों से ( जो वातावरण के लिए एंटी-सेप्टिक का कार्य करते हैं ) से वातावरण से कीट-पतंगे ( जो इस मौसम में अधिक होते हैं)सूक्ष्म-जीव, बेक्टीरिया-आदि नष्ट होते हैंमौसम के संधि-स्थल पर मौसम के अनियमित व्यवहार (कभी गरम-कभी नरम) को सम करते हैं
                     यही कार्य सरसों के तेल के दीपक जलाने से होता है | तेल का एंटी-सेप्टिक  प्रभाव ( यज्ञ , हवं, आहुतियाँ  व होलिका दहन आदि की भांति )  वायुमंडल में वाष्पित होकर वातावरण को इन सभी प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करता है |  जहां मोमबत्तियाँ  व  आधुनिक विद्युत बल्ब सिर्फ प्रकाश व ऊष्मा का ही प्रभाव देते हैं ....तेल का नहीं |
                    अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने घिसी-पिटी कहानियों को दोहराते रहते हैं ..क्योंकि यह भारतीयों का/ हिंदुओं का पावन पर्व है ...???? खतरनाक व अत्यधिक आवाज व शक्ति वाले...बड़ी-बड़ी कंपनियों में बने आधुनिक शक्तिशाली पटाखों आदि को सरकार को स्वतः ही सख्ती से बंद कर देना चाहिए |
                   जहां तक सांस के रोगी की सांस की बात है वह तो सदा ही इस मौसम के संधि-स्थल पर सामान्यतया अधिक सक्रिय हो जाती है |
                    और दुर्घटनाओं की बात-- वह तो खाना खाने से, मिलावट की मिठाइयां खाने से भी होती रहती हैं तो क्या खाना खाना बंद करदेंगे | मिलावट को बंद कीजिये ..मिठाइयों को नहीं |
            क्या दुनिया भर में, दुनिया के हर देश में  प्रतिवर्ष एवं वर्ष भर होने वाले खेलों, उत्सवों व अन्य पर्वों आदि में जो आतिशबाजी होती है ... उससे प्रदूषण नहीं होता ????
                 हमें वस्तुओं व तथ्यों को सावधानी पूर्वक चयन करना चाहिए .....अनावश्यक अति- आधुनिकता व अंधविश्वासी छद्म-वैज्ञानिकता से व उसके व्यावहारिक -चलन से सावधान रहना आवश्यक है |

सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

छिद्रान्वेषण ----सजाये मौत और अल्पसंख्यक आयोग तथा गद्दाफी की ह्त्या .....डा श्याम गुप्त

  १-सजाये मौत ----                  अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री हबीबुल्लाह का कथन है कि वे सजाये मौत के विरुद्ध हैं , वे उसे बर्बर युग की याद बताते हैं , वे स्वयं को बौद्ध बताते हुए वे खून्ख्खार , दुर्दम्य , ह्त्या जैसे कृत्यों के अपराधियों ,  आतंकवादियों को भी सजा के खिलाफ हैं |  मेरी समझ में नहीं आता कैसे कैसे  लोगों को आयोगों का अध्यक्ष बना दिया जाता है | जो स्वयं अल्पसंख्यक समाज से है वह तो उन्हीं के गुण गायेगा | उसे तो   आतंकवादियों में भी बौद्ध व मुस्लिम ही  नज़र आएंगे | उन्हें इन आतंकवादियों की बर्बरता संज्ञान में नहीं आती ? यदि समाज में बर्बरता का कृत्य किया जाएगा तो अपराधी के साथ भी बर्बरता होगी ही | यह सब आतंकवादियों व मुस्लिम- अपराधियों के संरक्षण का अग्रिम प्रयास है | क्या अभीतक उन्होंने कभी सजाये मौत के विरुद्ध अभियान चलाया ? अचानक अब यह सब कैसे याद आने लगा ?
                      शास्त्रों का कथन है कि  " शठे शाठ्यं समाचरेत "   एवं  साम दाम विभेद व दंड ..जो चार नीतियां है व्यष्टि व समष्टि  के अपराधों को रोकने की ...उनमें दंड एक प्रमुख नीति है .. जो दुर्दम्य व इस प्रकार के आपराधिक कृत्यों के विरुद्ध करनी चाहिए | परन्तु हबीबुल्ला जी को क्या पता शास्त्रीय तथ्य ...
                    जहां तक बौद्ध धर्म का सवाल है ...प्रसंगवश यह भी बता दिया जाय कि इसी भ्रमात्मक अहिंसा नीति के कारण बौद्ध धर्म विश्व से तिरोहित हुआ | अहिंसा जैसे दैवीय सद्गुण की किस प्रकार विकृति होती है ? बौद्ध व जैन धर्म वालों ने शास्त्रीय वाक्य के प्रथम भाग "अहिंसा परमो धर्म "  को तो अपना लिया परन्तु द्वितीय भाग  " धर्म हिंसा तथैव च .."  को भुला दिया | अर्थात धर्मार्थ ( राज्य, क़ानून, न्याय, सामाजिक के  व्यापक हित ) की गयी हिंसा , हिंसा नहीं होती अपितु आवश्यक होती है |
                   इसी भ्रामक अहिंसा वृत्ति के कारण --- जब मुसलिम आक्रमणकारियों ने गांधार (कंधार) और सिंध पर आक्रमण किया तब जनता ने अपने को 'बौद्घ' कहकर युद्घ करने से इनकार किया। मुहम्मद-बिन-कासिम ने सब प्रदेश जीता। राजा दाहिर को बंदी बनाकर मार डाला और भीषण नरसंहार किया। इस पाप की दोषी तो वहां की बौद्घ जनता थी, जो अहिंसा व्रत के कारण युद्घ से विरत रही एवं   जनता ने सम्राट का साथ देने से इनकार कर दिया|   अन्य  उदाहरण भारत की पश्चिमी सीमा पर हुए इसलामी आक्रमणों की कहानियां हैं |
         संसार के इतिहास में अनेकों बार बर्बर व्यक्तियों व जातियों ने अपने से सभ्य लोगों का विनाश कर डाला है ।  मूलतः'बर्बर मुसलिम आक्रमण ही बौद्घ मत के समूल उच्छेद का कारण बने।'
                       
                    क्या हम,  हमारी सरकार,  हबीबुल्लाह कुछ सबक लेंगे??


 २- गद्दाफी की ह्त्या---  कौन नहीं जानता कि लीबिया के शासक कर्नल मोहम्मद उमर गद्दाफी ने सत्ता में आते ही  तेल की सभी विदेशी कंपनियों को निकाल बाहर किया था जो देश का धन लूट कर बाहर लेजाती थीं एवं देश को अत्यधिक हानि सहनी पड रही थी | इससे कुछ वर्षों में ही लीबिया की अर्थ व्यवस्था तेजी से उन्नति की ओर अग्रसर हुई | इसीलिये गद्दाफी अमेरिका व योरोपीय शासकों की आँखों की किरकिरी बने हुए थे | यह राजनैतिक- कूटनीतिक चाल व राजनैतिक ह्त्या थी, जिसमें देश के ही कुछ विरोधी समूह दुश्मनों से मिल जाते हैं इसीलिये सुनियोजित योजनानुसार पहले शासक को अत्याचारी, विलासी आदि प्रचारित किया जाता है फिर उसकी ह्त्या करने के षडयंत्र ताकि अपनी कठपुतली सरकार बना कर अपना उल्लू सीधा किया जा सके |

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

छिद्रान्वेषण ----ये कहाँ जारहे हैं हम......ड़ा श्याम गुप्त ...


ये कहाँ जारहे हैं हम......

                                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
                       प्रायः प्रगतिवादी विज्ञजन आंग्ल संस्कृति/ वैचारिक प्रभाव वश ..पोज़िटिव  थिंकिंग, आधे भरे गिलास को देखो ....आदि कहावतें कहते पाए जाते हैं  ...परन्तु गुणात्मक ( धनात्मक + नकारात्मक ) सोच ..सावधानी पूर्ण सोच होती है..जो आगामी व वर्त्तमान खतरों से आगाह करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |  देखिये  आज के छिद्रान्वेषण  ....
१-  वैज्ञानिक व प्रगतिवादी समाज का असत्याचरण ----अभी तक तो हम सिगरेटों के पैकों / विज्ञापनों पर छोटे छोटे महीन अक्षरों में  .." सिगरेट / तम्बाकू स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है"....के विज्ञापन देकर ही अपनी कर्तव्य की इतिश्री मानते रहे हैं........   अब देखिये इस विज्ञापन को ...न्यूनतम ई एम् आई १७२५  बड़े अक्षरों में और प्रति लाख छोटे में --क्या इससे कार की न्यूनतम किश्त १७२५/ का भ्रम  नहीं होता | बहुत छोटे अक्षरों में ...नियम व शर्तें लागू ...भी लिखा होगा .....क्यों ?? क्या यह धोखा देने की मूल नीयत नहीं प्रदर्शित होती.....कहाँ है सरकारी नियामक तंत्र...सामाजिक संस्थाएं.....समाचार पत्रों का सामाजिक दायित्व ...
            माना कि यह व्यावसायिक मेनेजमेंट -कौशल है....उन्हें अपनी कार बेचनी है ...इसीलिये तो बाज़ार में पूंजी लगाकर बैठे हैं......पर क्या उनका कोई सामाजिक दायित्व नहीं .....फिर नटवर लाल ,  बेईमानी में पकडे जाने वाले उठाईगीरे  व इनमें क्या अंतर है ......हम सोचेंगे ???
२- साहित्यिक  जगत में --दायित्वहीन, विचारहीन  सोच के कुछ उदाहरण ----
       एक-कवि सम्मलेन में कोई कवि . पढते हैं------
                             "राम तो बस चुनाव जीतने के लिए भुनाए जाते हैं,
                              रावण तो जलाकर भी सैकड़ों चूल्हे जला जाते हैं ||"  ----- क्या यह राजनैतिक पक्षधरता का साहित्य नहीं है, क्या यह  सदियों की , जन जन की आस्था पर प्रहार नहीं है , क्या आप रावण को राम के ऊपर प्रश्रय देना चाहते हैं ??   इसी प्रकार एक और कवि  पढते हैं---
                               राजनीति हमारे देश का राष्ट्रीय उद्योग है ,
                              जनता की आशाओं पर रेत के महलों का अजूबा प्रयोग है ||........क्या हम बिना राजनीति के देश चलाना चाहते हैं ...क्या यह संभव है ?.... एसी कवितायें सामयिक वाह  वाह --तालियां  तो बटोर सकती हैं पर सामाजिक दायित्व से परे अनास्था उत्पन्न करती हैं | .आखिर इन सब अतार्किकताओं से जन जन का संस्थाओं पर  अनास्था, अविश्वास  उत्पन्न करके हम क्या पाना चाहते हैं ---
      दो--केसर कस्तूरी ---कथा वाचन में --बेटी कहती है ---"राजा जनक ने सीता को दुःख सहने के लिए छोड़ दिया था | यही औरतों का भाग्य है |".......सुनने में बड़ा भावुक-करुण  लगता है ... इसे अपराध बोध की कहानी व स्त्री विमर्श ..कहा जाता रहा  है पर यह हमें कहाँ लिए जारहा है....... क्या चाहती हैं महिलायें / तथाकथित प्रगतिशील समाज / साहित्यकार ......क्या जनक सीता को राम के साथ जाने देने की अपेक्षा ...स्वयं अपने महलों में रखलेते ......क्या हम चाहते हैं कि जिस पत्नी/ नारी  ने सुख के दिनों में ...जिस पुरुष /पति के साथ मज़े  लिए, सुख भोग किया ...वह दुःख के दिनों में पिता के घर ...आनंद भोगे और पति को जंगल में दुःख सहने को छोड़ दे ...बिना  उसके किसी कसूर के....
    तीन--लन्दन में स्थापित --प्रगतिशील लेखक मंच --का कथन है कि वामपंथी विचारधारा से ही छोटे छोटे शहरों के  महत्वपूर्ण लेखकों का निर्माण व विकास हुआ है...उदाहरण---सज्जाद ज़हीर , फैज़, जोश, फिराक, सरदार जाफरी, ताम्बा , साहिर, कैफी आज़मी , कृष्ण चंदर, मंटो, नागार्जुन, मुक्तिबोध , केदार नाथ , त्रिलोचन, यशपाल ,नंबर सिंह ...आदि ..भारतीय  विचार धारा के विरोधी ....विदेशी वामपंथी सोच के साहित्यकार ही साहित्यकार  हैं...... भारतीय विचार धारा के साहित्यकारों --मैथिली शरण गुप्त, निराला, दिनकर, महादेवी, प्रसाद, की कोई अहमियत नहीं है, न आज के भारतीय विचार धारा पर लिखे जारहे साहित्य -साहित्यकारों ने कुछ किया है..........तो फिर आज जन-समाज में साहित्य व कविता के प्रति अरुचि का   कारण कहाँ स्थित है .....शायद इसी  प्रगतिशीलता की जिद में  स्व-समाज..संस्कृति, सदियों से प्रतिष्ठित भारतीय संस्कृति के  पतनोन्नयन में ....
                         ये सारे कारण, साहित्यिक / सामाजिक अवैचारिकता , अतार्किकता ,  मूल्यहीनता -- समाज में जन जन को भ्रम,अतार्किकता, अवैचारिकता, अनास्था , मूल्यहीनता की  स्थिति में डालते हैं....और जन जन-- साहित्य, सामाजिकता,  नैतिकता  से आस्थाहीन होकर ..उससे दूर होकर ...फिर उसी सदा  सुलभ भौतिकता के चरणों में जा बैठता है .....शान्ति खोजने लगता है ...अनाचरण ...भ्रष्ट-आचरण ...व  आज के द्वंद्वों का यही मूल कारण है ||

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

कविता लेखन ....मूल प्रारंभिक रूप-भाव......ड़ा श्याम गुप्त....

                    ब्लॉग जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मुफ्त लेखन की सुविधा होने से अनेकानेक  ब्लॉग आरहे हैं एवं नए नए  व युवा कवि अपने आप  को प्रस्तुत कर रहे हैं ....हिन्दी व भाषा एवं  समाज के लिए गौरव और प्रगति-प्रवाह की बात है ......परन्तु इसके साथ ही यह भी प्रदर्शित होरहा है कि .....कविता में लय, गति , लिंगभेद, विषय भाव का गठन, तार्किकता, देश-काल, एतिहासिक तथ्यों की अनदेखी  आदि  की जारही है |  जिसके जो मन में आरहा है तुकबंदी किये जारहा है | जो काव्य-कला में गिरावट का कारण बन सकता है|
                         यद्यपि कविता ह्रदय की भावाव्यक्ति है उसे सिखाया नहीं जा सकता ..परन्तु भाषा एवं व्याकरण व सम्बंधित विषय का उचित ज्ञान काव्य-कला को सम्पूर्णता प्रदान करता है |  शास्त्रीय-छांदस कविता में सभी छंदों के विशिष्ट नियम होते हैं अतः वह तो काफी बाद की व अनुभव -ज्ञान की बात है  परन्तु प्रत्येक नव व युवा कवि को कविता के बारे में कुछ सामान्य ज्ञान की छोटी छोटी मूल बातें तो आनी  ही चाहिए |   कुछ  सहज सामान्य प्रारंभिक बिंदु  नीचे दिए जा रहे हैं, शायद नवान्तुकों व अन्य जिज्ञासुओं के लिए सार्थक हो सकें ....
             (अ) -अतुकांत कविता में- यद्यपि तुकांत या अन्त्यानुप्रास नहीं होता परन्तु उचित गति, यति  व लय अवश्य होना चाहिए...यूंही कहानी या कथा की भांति नहीं होना चाहिए.....वही शब्द या शब्द-समूह बार बार आने से सौंदर्य नष्ट होता है....यथा ..निरालाजी की प्रसिद्ध कविता.....
"अबे सुन बे गुलाव ,
भूल  मत गर पाई, खुशबू रंगो-आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा -
कैपीटलिस्ट ||"


          (ब )- तुकांत कविता/ गीत आदि  में--जिनके अंत में प्रत्येक पंक्ति  या पंक्ति युगल आदि में (छंदीय गति के अनुसार)  तुक या अन्त्यानुप्रास समान होता है...
-- मात्रा -- तुकांत कविता की प्रत्येक पंक्ति में सामान मात्राएँ होनी चाहिए मुख्य प्रारंभिक वाक्यांश, प्रथम  पंक्ति ( मुखडा ) की मात्राएँ गिन कर  उतनी ही सामान मात्राएँ प्रत्येक पंक्ति में रखी जानी चाहिए....यथा ..

 "कर्म      प्रधान      जगत      में    जग   में,  =१६ मात्राएँ 
 (२+१ , १+२+१ ,  १+१+१ ,  २ ,  १+१ , २  =१६)
  प्रथम       पूज्य    हे     सिद्धि     विनायक  |  = १६.
(१+१ +१,  २+१,    २ ,   २+१ ,     १+२+१+१   =१६ )

  कृपा       करो       हे       बुद्धि      विधाता ,         = १६ 
(१+२ ,   १+२ ,     २ ,      २+१     १ +२ +२     =१६  )

 रिद्धि       सिद्धि      दाता         गणनायक ||   =  १६
(२+१,      २+१ ,     २+२ ,       १+१+२+१+१  =१६ )

-लिंग ( स्त्रीलिंग-पुल्लिंग )---कर्ता व कर्मानुसार.....उसके अनुसार उसी  लिंग का प्रयोग हो.... यथा ....
       " जीवन  हर वक्त लिए एक छड़ी होती  है "  ----यहाँ  क्रिया -लिए ..कर्ता  जीवन का व्यापार   है..न कि छड़ी  का  जो समझ कर  'होती है '  लिखा गया ----अतः या तो ....जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होता है ....होना चाहिए ...या  ..जिंदगी  हर वक्त लिए एक छड़ी होती है ...होना चाहिए |
- इसी प्रकार ..काव्य- विषय का --काल-कथानक का समय  (टेंस ), विषय-भाव ( सब्जेक्ट-थीम ), भाव (सब्सटेंस), व  विषय क्रमिकता,  तार्किकता , एतिहासिक तथ्यों की सत्यता,  विश्व-मान्य सत्यों-तथ्यों-कथ्यों  ( यूनीवर्सल ट्रुथ ) का ध्यान रखा जाना चाहिए....बस .....|
४-- लंबी कविता में ...मूल कथानक, विषय -उद्देश्य , तथ्य व देश -काल  ....एक ही रहने चाहिए ..बदलने नहीं चाहिए .....उसी मूल कथ्य व उद्देश्य को विभिन्न उदाहरणों व कथ्यों से परिपुष्ट करना एक भिन्न बात है ...जो विषय को स्पष्टता प्रदान करते  हैं  ....

                           -और सबसे बड़ा नियम यह है कि ...स्थापित, वरिष्ठ, महान, प्रात: स्मरणीय ...कवियों की सेकडों  रचनाएँ  ..बार बार पढना , मनन करना  व उनके कला व भाव का अनुसरण करना .......उनके अनुभव व रचना पर ही बाद में आगे शास्त्रीय नियम बनते हैं......




 

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

छिद्रान्वेषण ...एक भाव-विषय .. दो रूप -----हम क्या चाहते हैं.......ड़ा श्याम गुप्त....

   शाबास ---महिलायें ज्ञान-विज्ञान के लिए उन्नति शिखर की ओर बढ़ रही हैं | आप यह चाहते हैं .---->
                         .....या....
<-----यह.....

----.इसमें शाबास की क्या बात है , सिर्फ कच्छा पहने युवा लडकियों की तस्वीर ...यहीं से प्रारम्भ होता है मांसलता पर रीझने-रिझाने का दौर...पहले खेल के नाम पर ...फिर फैशन शो...फिर देह-प्रदर्शन...फिर...मधुमिता...कविता.. ------हम क्या चाहते हैं.....समाज नारी से क्या चाहता है...उसे कहाँ देखना  चाहता है ....नारी स्वयं क्या चाहती है..??

सोमवार, 22 अगस्त 2011

वंशी नहीं बजा पायेंगे----ड़ा श्याम गुप्त

        


 







 


गोवर्धन गिरिधारी ने जब, गिरि गोधन को उठाया होगा ।
मन में एक बार तो हरि के, एसा भी कुछ आया होगा।
 
गीता ज्ञान दिया गोविन्द ने, मन कुछ भाव समाया होगा |
नटवर ने कुछ सोचा होगा, मन कुछ भाव बसाया होगा।।

युग युग तक ये कर्म कथाएँ ,जन मानस में पलती रहें।
तथा
कर्म, कर्मों की गति पर,संतति युग युग चलती रहें ।

कर्म भाव को धर्म मानकर ,जनहित कर्म ध्वजा फहरे ।
परहित भाव सजे जन जन में,मन यह भाव सुहाया होगा ।।

सुख समृद्धि पले यह अंचल, युग युग यह युग-धर्म रहे।
दुःख दारिद्र्य दूर हों सारे, मन श्रम -ज्ञान का मर्म रहे ।

भक्ति, ज्ञान ,विज्ञान, साधना, में रत रहें सभी प्रियजन ।
सत्-आराधन की महिमा का, मन में भाव सजाया होगा।।

रूढि, अंध श्रृद्धा को छोड़कर, गोवर्धन पूजन अपनाया ।
गर्व चूर करने सुरपति का,गोवर्धन कान्हा ने बसाया।

चाहे जितना कुपित इंद्र हो, चाहे जितनी वर्षा आये।
नहीं तबाही अब आयेगी,मन दृढ भाव बनाया होगा।।

कान्हा,राधा, सखी-सखा मिल,कार्य असंभव करके दिखाया।
सात दिवस में सभी ग्राम को, गोवर्धन अंचल में बसाया।

कुशल संगठन दृढ संकल्प,श्रमदान का एसा खेल रचा।
कहते कान्हा ने उंगली पर गोवर्धन को उठाया होगा ।।

वही देश वासी कान्हाके,भूल गए हैं श्रम-आराधन
भक्ति श्रृद्धा का भक्तों की,करते रहते केवल दोहन


ताल, सरोवर, नदी, गली सब, कूड़े-करकट भरे पड़े हैं।
जिन्हें कृष्ण-राधा ने मिलकर,निज हाथों से सजाया होगा।।

कर्म भावना ही न रही जब, धर्म भाव कैसे रह पाए।
दुहते धेनु अंध-श्रृद्धा की,पत्थर पर घृत -दुग्ध बहाए।

रूढि, अन्ध श्रृद्धा में जीते, दुःख-दारिद्र्य हर जगह छाया।
जिसे मिटाने कभी 'श्याम' ने ,जन अभियान चलाया होगा।।

आज जो गिरिधारी आजायें, कर्मभूमि की करें समीक्षा।
निज कान्हा की कर्मभूमि की, राधारानी करें परीक्षा।

अश्रु नयन में भर आयेंगे, वंशी नहीं बजा पायेंगे
कर्म साधना भूलेंगे सब, कभी मन में आया होगा ॥ 
                                                                                              ----चित्र साभार ..

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

छिद्रान्वेषण -तथ्य व उदाहरण व महत्त्व ---डा श्याम गुप्त ....



" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है  छिद्रान्वेषण का एक उदाहरण -----
 -----पिछले दिनों  एक समाचार था  --- आर्ट ऑफ़ लिविंग के श्री रविशंकर, अन्ना हजारे, किरण बेदी , स्वामी अग्निवेश आदि विभिन्न महानुभावों ने मिलकर एक भ्रष्टाचार निरोधी संस्था बनाई , जो जन -जन में भ्रष्टाचार के विरुद्ध ' जन आन्दोलन ' चलाने का कार्य करेगी । सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार किस तरह देश-समाज -विश्व को खा रहा है और उसे हटाने की महती आवश्यकता है । यह पुनीत कार्य अवश्य ही एक अत्यावश्यक कार्य है | इन सभी महानुभावों ने मिल कर एक संस्था बनाई है --- " इंडिया अगेंस्ट करप्शन "....
---अब इतने महत्वपूर्ण व महान कृतित्व में क्या छिद्रान्वेषण की बात हो सकती है ?---हो सकती है , देखिये इतने अच्छे कार्य का किस तरह महत्त्व नष्ट हो सकता है, ----
...जिस जन जन के लिए यह अभियान चलाया जारहा है वह जन-जन क्या सिर्फ अंग्रेज़ी समझता है जो संस्था का नाम अंग्रेज़ी में रखा गया है .
......हमें करप्शन तो इंडिया से हटाना है तो वही करप्शन के अगेंस्ट कैसे हो सकता है ? क्या यह नाम हिन्दी -राष्ट्र भाषा में -भ्रष्टाचार निरोधी संस्था, हम भ्रष्टाचार नहीं करेंगे , जन जन को जगायेंगे-भ्रष्टाचार हटायेंगे ....आदि क्यों नहीं हो सकते थे ?
-------यह हिन्दी,हिन्दुस्तान भारतीय भाव की कमी कम समझ का परिणाम है क्योंकि इस के मूल में अधिकतर शासन व्यवस्था द्वारा सताए , प्रशानिक लोग हैं...पर किसी अच्छे कार्य के लिए उन्हें भारतीय भाव का अनुसरण तो करना ही चाहिए , सम्पूर्ण प्रभाव भाव को जन जन , सामान्य जन में सम्प्रेषण के निमित्त.... ।----यह  छिद्रान्वेषण का महत्त्व है ....इसी के द्वारा हम बात की गहराई को समझ सकते हैं.....