रविवार, 27 मई 2012

सांस्कृतिक शून्यता का जिम्मेदार कौन? ....सन्दर्भ आईपीएल ... डा श्याम गुप्त...



                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ऑफ द फील्ड ---अभय खुरासिया का आलेख -राजस्थान पत्रिका ....संदर्भ -आईपीएल ..
                श्री अभय खुरासिया का उपरोक्त आलेख निश्चय ही आखें खोलने वाला है , हमें निश्चय ही गहनता से सोचना होगा, जैसा वे कहते हैं .." जिम्मेदारी युवा पर ही क्यों डालदी जाती है | सांस्कृतिक शून्यता का जिम्मेदार कौन? हमारे वरिष्ठ व जिम्मेदार तब कहाँ थे जब एम् टीवी, एफ टीवी,व तमाम दूषित तस्वीरों, विचारों का आगाज़ हो रहा  था | हमारे बच्चे हिंसा, मादकता , सनसनी  को देख कर बड़े होरहे हैं| जैसे बीज बो रहे हैं वैसे ही अंकुर फूटेंगे |"  ......
               महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ..जहां तक मुझे अभय का चित्र व युवाओं की वकालत करने से  लगता है कि वे एक युवा हैं ... अर्थात यह युवाओं का वक्तव्य है .... अपनी वरिष्ठ पीढ़ी पर उचित मार्गदर्शन न् करने हेतु ..... और यह एक कटु-सत्य भी है | .तो बात यहाँ  और भी गंभीर होजाती है, तथा  समाज व मानवता  के लिए एक चेतावनी...खतरे की घंटी ....
                 इस प्रकार वे अपनी युवा -आकांक्षा व पहले वाली पीढ़ी पर आक्षेप के साथ मूलतः आई पी एल को बंद करने के विचारों पर असहमत प्रकट करते हैं |
          
                 परन्तु साथ ही साथ यद्यपि शायद अनुभव-ज्ञान की कमी के कारण उनके विभिन्न कथ्य स्वयं ही विपरीतार्थक हैं, कंट्रोवर्शियल ........यथा-----

       -वे एक तरफ कहते हैं ..."समस्या का समाधान ताला लगाने में नहीं है वरन  ताला खोल सूक्ष्म शल्य क्रिया में है|"
        ---- परन्तु फिर ताले का आविष्कार ही क्यों हुआ ?
 इसके विपरीत भाव में वे कहते हैं कि .." जब सामाजिक मापदंड ही भौतिकता है तो युवा भटकेगा ही "
.........अर्थात सामाजिक तालों की, मापदंडों की  आवश्यकता है "|

       - वे एक तरफ कहते हैं .." खिलाड़ी धन के तट पर बना रहे, पर साथ ही मूल्यों के सेतु को भी मज़बूत करता चले "......वहीं दूसरी ओर कहते हैं कि..."मोह-माया से परे  सोचना एक अवस्था के बाद ही आता है |"
            ----निश्चय ही वह अवस्था आते आते सब नष्ट होजायागा | सब कुछ गलत-सलत करलेने के बाद यदि कुछ  सोचा तो क्या लाभ |

                       वस्तुतः यदि अनुभव व ज्ञान से सोचा जाय तो युवा लेखक भूल जाते हैं कि --मानव मन एक वायवीय तत्त्व है एवं विषयों में शीघ्र गिरता है ...जैसा कि वे स्वयं स्वीकार करते हैं ..."हमारा नैसर्गिक स्वभाव है कि हमें नकारात्मक बातें ज्यादा आकर्षित करती हैं".....अतः सर्जरी की नौबत ही क्यों आये , पहले से ही रोकथाम के उपाय होने चाहिए | "प्रीवेंशन इज बैटर देन क्योर "... जैसा कि वे पहली पीढ़ी पर दोषारोपण के साथ स्वयं ही स्वीकार करते हैं ......" .....हमारे वरिष्ठ व जिम्मेदार तब कहाँ थे जब एम् टीवी, एफ टीवी,व तमाम दूषित तस्वीरों, विचारों का आगाज़ हो रहा  था | हमारे बच्चे हिंसा, मादकता , सनसनी को देख कर बड़े होरहे हैं| जैसे बीज बो रहे हैं वैसे ही अंकुर फूटेंगे |"  ....... अतः निश्चय ही मानव मन को दूषित करने वाले साधनों को ही बंद कर देना चाहिए ...मूलतः वे जो किसी भी प्रकार से सामाजिक लाभ में सहायक नहीं हैं ...और अतिरिक्त आर्थिक लाभ सदैव असामाजिक होता है | अति-भौतिकता, मोह-माया उत्पन्न करता है, उसकी और खींचता है  |
             अतः  आई पी एल  जैसे ( व अन्य उल-जुलूल  डांस, गायन, देह-प्रदर्शन , अदि कला  व प्रगतिशीलता के नाम पर होने वाले व्यर्थ के ) आयोजनों को निश्चय ही बंद कर देना  चाहिए | साथ ही साथ आज की प्रौढ़ व अनुभवी पीढ़ी को अपनी गलतियों , गलत योजनाओं , गलत आचरणों पर सोचना चाहिये  व उचित समाधानार्थक उपाय करने चाहिए | अन्यथा भविष्य की पीढ़ी अपनी बर्वादी हेतु उन्हें कभी माफ नहीं करेगी |
                 
            

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

सच्चे मोती....लेट अस मेक इन्डिया व द परफ़ेक्ट क्लिक...डा श्याम गुप्त...





 असली रत्न... ज्ञान, दर्शन व चरित्र  नकि   पैसा पत्नी, पुत्र .....श्री कांति मुनि



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                लैट अस मेक इंडिया ..लाइक ..नॉन-इंडिया




यहां तक कि ........
                     यू  हैव टू रिवील .......ईविंन  जस्ट फॉर ऐ क्लिक  .....
 
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रविवार, 4 मार्च 2012

आज का छिद्रान्वेषण---

" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है  आज का छिद्रान्वेषण---
१. अशोक स्तम्भ का अपमान और रेलवे ...
 ----- यह तो ठीक ही है...इस अपमान से बचना चाहिए हम सब को , सरकारी संस्थानों का अपराध तो अक्षम्य है ।
---परन्तु यक्ष-प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में किसी ने आजतक ऐसी टू , थ्री  कोचों में इन टायलेट पेपरों को कभी देखा है , प्रयोग किया है ....?????
२.क्या  होलिका दहन शव-दाह का प्रतीक है  .....अब देखिये सामने के समाचार में , क्या कहा जारहा है....तथाकथित आचार्य जो १००००० पेड़ लगाने की मुहिम चलाये हुए हैं । ऐसे अज्ञानी जन आचार्य बन कर आयेंगे तो यही होगा कि १००००० लाख पेड़ लगाने की व्यर्थ की  मुहिम चलाकर अपना नाम कमाएंगे ..बस...जो कहीं   भी नहीं दिखाई देंगे ....आखिर यूंही स्कूल--लान, पार्कों में पेड़ लगाने से क्या होगा?  वहां तो संस्थानों के माली आदि होते ही हैं ..पेड़ भी लगाए होते हैं ....पेड़ों की भीड़ लगाकर क्या हासिल होना है....
                  आगे देखिये ..पार्कों , खाली प्लाट , रेलवे लाइन के किनारे होली जलाई जाय  ...
बताइये  यह उचित है....रेलवे लाइन के किनारे होली दहन या इंजिन-ट्रेन दहन.....पब्लिक का पटरियों पर कटन.....वाह ! ....पार्कों को  होली दहन से बर्बाद कराने का इरादा है क्या ?
......बस्ती में खाली प्लाट के  आसपास  प्राय: दूसरे घर होते हैं ...और  शहर से बाहर होली-दहन का कोई अर्थ ही नहीं ।
---------------ऐसी सारी बातें किसी भी अच्छे मुहिम पर पानी फेर सकती हैं....
                

शनिवार, 3 मार्च 2012

आज का छिद्रान्वेषण----साहित्यकार -पत्रकार ..साहित्य..कविता --कवि...


" छिद्रान्वेषण " को प्रायः एक अवगुण की भांति देखा जाता है, इसे पर दोष खोजना भी कहा जाता है...(fault finding). परन्तु यदि सभी कुछ ,सभी गुणावगुण भी ईश्वर - प्रकृति द्वारा कृत/ प्रदत्त हैं तो अवगुणों का भी कोई तो महत्त्व होता होगा मानवीय जीवन को उचित रूप से परिभाषित करने में ? जैसे-- कहना भी एक कला है, हम उनसे अधिक सीखते हैं जो हमारी हाँ में हाँ नहीं मिलाते , 'निंदक नियरे राखिये....' नकारात्मक भावों से ..... आदि आदि ... मेरे विचार से यदि हम वस्तुओं/ विचारों/उद्घोषणाओं आदि का छिद्रान्वेषण के व्याख्यातत्व द्वारा उन के अन्दर निहित उत्तम हानिकारक मूल तत्वों का उदघाटन नहीं करते तो उत्तरोत्तर, उपरिगामी प्रगति के पथ प्रशस्त नहीं करते आलोचनाओं / समीक्षाओं के मूल में भी यही भाव होता है जो छिद्रान्वेषण से कुछ कम धार वाली शब्द शक्तियां हैं। प्रस्तुत है  आज का छिद्रान्वेषण---
 
 १-   देखिये सामने वाले समाचार में -- हिन्दी के साहित्यकार -पत्रकार भारत की सांस्कृतिक वैविध्य बचाने के लिए काम होरहा है ...अंग्रेज़ी भाषा में ...' द कंटेसटेड ग्राउंड ऑफ़ कल्चर" विषय पर ।

----वस्तुतः आजकल हर एरा-गेरा पत्रकार , पत्रिका -मैगजीन छापने वाला भी साहित्यकार बन गया है अतः साहित्य में  कूड़े तो आना  ही है .... हम अपना साहित्य , भाषा व संस्कृति ..अंग्रेज़ी में बहस करके बचायेंगे ??????

2--अब  कविता --कवियों  को  लें .....देखिये साथ के समाचार को.....बिना तलवार कोई सिकंदर बोलता है क्या ....जिस्म को उतार दीजिए तब किसी से प्यार कीजिए ....कोइ शायर मुहब्बत में संभालकर बोलता है क्या ..नींद के मारे हम ठहरे बंजारे...अगर मतलब साढ़े कोइ गधे को बाप कहते हैं .....
-----आप ही बताएं यह कौन सी साहित्यक भाषा है व कौन सा साहित्य है, क्या अर्थ हैं इन पंक्तियों के ....???

३- अब एक और उदाहरण देखिये पत्रकार-साहित्यकारों -समाचार पत्रों के सामाजिक दायित्व का .....निम्न चित्र में   
--------------  आपका साइज़ क्या है ...यह कौन सी भाषा है....आप ही सोचिये.....अब आगे क्या रह गया है .... क्या पैसे के लिए अब न्यूड - मैथुन-रत चित्र ..विज्ञापन ..समाचार भी खुले आम प्रकाशित होंगे पत्रों में ...?????????..... कहाँ जारहे हैं हम...हमारा साहित्य...साहित्यकार -पत्रकार ..????????

रविवार, 8 जनवरी 2012

छिद्रान्वेषण... अकर्म..व अनैतिक कर्म...डा श्याम गुप्त...


--- इसे कहते हैं ..अकर्म ...
१.-------वाह ! वाह!  क्या बात है...क्या न्याय   है ..लोगों को तो ओढने को मुहैया नहीं है....दो गज कपड़ा ..जानवरों की मूर्तियों को पोलीथीन की ओढनी..?
----जिस तथ्य के , अनावश्यक खर्च, के कारण आलोचना  हुई उसी के कारण ,आज्ञा-पालन में वही तथ्य, अनावश्यक खर्च... .....क्या हम ..हमारी संस्थायें दूरंदेशी से कार्य कर रही हैं ......
---मुख्यमंत्री मायावती जी को आभारी होना चाहिए  कि इस प्रकार उन्हें और अधिक पब्लीसिटी मिलेगी, ढकी हुई मूर्ति देख कर और अधिक लोग पूछेंगे कि ये क्या है ...और जबाव मिलेगा...बसपा का हाथी ....बहुत खूब....
----क्या  चुनाव चिन्ह ’साइकल ’  का भी सडक पर, शहर में चलना /चलाना बन्द किया जायगा ...?

       २-  यदि आप  किक होने को तैयार  है, यदि आप  क्लिक होना चाहते हैं  तो आपको निश्चय ही... बटन खोलने होंगे ...

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण--कविता केवल कला ही नहीं विज्ञान भी है.....डा श्याम गुप्त.....


                             कविता केवल एक कला ही नहीं अपितु विज्ञान भी है, उच्चतम विज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान , जिसमें कवि-साहित्यकार को  सामयिक, एतिहासिक व  आनेवाले समय के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक सत्यों व तथ्यों का तर्कपूर्ण, सत्य व यथातथ्य उदघाटन करना होता है | विज्ञान क्या है...सत्य की खोज,सत्य का निरूपण व सत्य का तर्कपूर्ण कथ्यांकन | अतः काव्य के कलापक्ष के साथ साथ उसके भावपक्ष का गहन महत्व होता है | यथा.... विश्वमान्य सत्य, वैज्ञानिक सत्य व तथ्य, गहन सामाजिक तत्वविचार ,अर्थार्थ, अर्थ-प्रतीति आदि |
              वस्तुतः कविता लिखने का मूल अभिप्रायः ही भाव-संवेदना व सामाजिक-सरोकार व सांस्कृतिक कृतित्व है | अतः भाव-दोषों के दूरगामी प्रभाव होते हैं | कलापक्ष  तो सहायक है, भाव सम्प्रेषण का  जन रंजक पक्ष है | वह क्लिष्ट , गुरु गाम्भीर्य युक्त न होकर जन जन के समझ में आने वाला सहज व सरल ही होना चाहिए |  परन्तु शब्दों का चयन व उनकी अर्थ  व भाव सम्प्रेषणता सहज व स्पष्ट होनी चाहिए अन्यथा गंभीर भाव त्रुटियाँ  रह जाने का भय रहता है | यथा ..हम कुछ उदाहरण देखेंगे...
उदाहरण १- एक सुप्रसिद्ध गीतकार के  सुप्रसिद्ध गीत की पंक्तियाँ देखिये---
           "  जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना ,
             अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाए || "
कितनी सहज व सरल लगती हैं ..यद्यपि कवि का सुमंतव्य सारे जहां को दीपित करने का है परन्तु  छिद्रान्वेषण  करने पर ....भाव क्या निकलता है ....की मनुष्य यदि दिए जलाए तो उसे सारी धरा के अंधेरों को मिटाने का प्रयत्न करना चाहिए " 'वाक्य ..'रहे ध्यान इतना'.. चेतावनीपूर्ण वाक्य लगता है कि ..यदि वह यह नहीं कर सकता तो ..न करे...न जलाए....क्या वास्तव में मानव में इतनी क्षमता है कि वह सम्पूर्ण धरा का अन्धेरा मिटा सके ...यह तो ईश्वर ही कर सकता है ..| जबकि ....माना हुआ सत्य यह है कि....'इक दिया है बहुत रोशनी के लिए '...अर्थात व्यक्ति जो कुछ भी, जितना भी  शुभकर्म कर सके, उसे करते जाना चाहिए, बिना  फल की इच्छा के  | यदि उसने एक कोना भी उजियारा कर दिया तो वह अन्य के लिए स्वयं उदाहरण की लकीर बनेगी.....यहाँ तार्किक-तथ्यांकन की त्रुटि है |
उदाहरण -२-.. ""तितली भौरों की बरात, निकल रही है, 
                        बगिया रूपी कानन से "
.....बगिया व कानन दोनों ही समानार्थक हैं शब्द हैं अतः यहाँ पर शब्दावली -दोष है |
उदाहरण -३-.. " उषा जा न पाए, निशा आ न पाए |".....यद्यपि कवि का भाव है कि ...ज्ञान नष्ट न हो अज्ञान न फ़ैल पाए ....परन्तु विश्वमान्य सत्य के विरुद्ध शब्दावली है ...उषा के जाने पर प्रकाश आता है, सूर्य उदय होता है , निशा नहीं आती वह तो उषा के आने से पहले होती है उषा द्वारा दूर कर दी जाती है | यहाँ विश्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य की उनदेखी की गयी है |


शनिवार, 3 दिसंबर 2011

ऍफ़ डी आई पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया........डा श्याम गुप्त


                                     खुदरा बाजार में ऍफ़ डी आई  पर विरोध  पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया  का कथन है कि.... ...मौजूदा आपूर्ति श्रृंखला में कई खामियां हैं ,किसानों को उपज का उचित दाम नहीं मिलता....आपूर्ति-तंत्र में अक्षमता , बिचौलिआपन तथा बरबादी है ...कोल्ड स्टोरेज बगैरह की व्यवस्था नहीं है.....आदि आदि....
            यदि एसा है तो यह तो आपकी सरकार की ही अक्षमता है | उसे ठीक करने के उपाय की बजाय आप विदेशियों को अपने घर में घुसा लेंगे क्या |   फिर तो राजनीति में, नेताओं के चरित्र में, मंत्रियों  के कार्यों में जाने कितनी खामियां हैं ...फिर क्यों हम भारतीय लोगों, नेताओं को ही सत्ता पर काविज़ करें , क्यों न विदेशियों को ही चुनाव में खड़ा होने का न्योता दें, क्यों न उन्हें ही नेता, मंत्री, मुख्य-मंत्री, राष्ट्रपति बनने का न्योता व मौक़ा दें ताकि देश की ये सारी समस्याओं का सरल, बिना कष्ट किये, बिना कठिनाई के  हल  होजाय |
           आप सब लोगों का क्या ख्याल है.