मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण--कविता केवल कला ही नहीं विज्ञान भी है.....डा श्याम गुप्त.....


                             कविता केवल एक कला ही नहीं अपितु विज्ञान भी है, उच्चतम विज्ञान, सामाजिक मनोविज्ञान , जिसमें कवि-साहित्यकार को  सामयिक, एतिहासिक व  आनेवाले समय के सामाजिक, मनोवैज्ञानिक सत्यों व तथ्यों का तर्कपूर्ण, सत्य व यथातथ्य उदघाटन करना होता है | विज्ञान क्या है...सत्य की खोज,सत्य का निरूपण व सत्य का तर्कपूर्ण कथ्यांकन | अतः काव्य के कलापक्ष के साथ साथ उसके भावपक्ष का गहन महत्व होता है | यथा.... विश्वमान्य सत्य, वैज्ञानिक सत्य व तथ्य, गहन सामाजिक तत्वविचार ,अर्थार्थ, अर्थ-प्रतीति आदि |
              वस्तुतः कविता लिखने का मूल अभिप्रायः ही भाव-संवेदना व सामाजिक-सरोकार व सांस्कृतिक कृतित्व है | अतः भाव-दोषों के दूरगामी प्रभाव होते हैं | कलापक्ष  तो सहायक है, भाव सम्प्रेषण का  जन रंजक पक्ष है | वह क्लिष्ट , गुरु गाम्भीर्य युक्त न होकर जन जन के समझ में आने वाला सहज व सरल ही होना चाहिए |  परन्तु शब्दों का चयन व उनकी अर्थ  व भाव सम्प्रेषणता सहज व स्पष्ट होनी चाहिए अन्यथा गंभीर भाव त्रुटियाँ  रह जाने का भय रहता है | यथा ..हम कुछ उदाहरण देखेंगे...
उदाहरण १- एक सुप्रसिद्ध गीतकार के  सुप्रसिद्ध गीत की पंक्तियाँ देखिये---
           "  जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना ,
             अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाए || "
कितनी सहज व सरल लगती हैं ..यद्यपि कवि का सुमंतव्य सारे जहां को दीपित करने का है परन्तु  छिद्रान्वेषण  करने पर ....भाव क्या निकलता है ....की मनुष्य यदि दिए जलाए तो उसे सारी धरा के अंधेरों को मिटाने का प्रयत्न करना चाहिए " 'वाक्य ..'रहे ध्यान इतना'.. चेतावनीपूर्ण वाक्य लगता है कि ..यदि वह यह नहीं कर सकता तो ..न करे...न जलाए....क्या वास्तव में मानव में इतनी क्षमता है कि वह सम्पूर्ण धरा का अन्धेरा मिटा सके ...यह तो ईश्वर ही कर सकता है ..| जबकि ....माना हुआ सत्य यह है कि....'इक दिया है बहुत रोशनी के लिए '...अर्थात व्यक्ति जो कुछ भी, जितना भी  शुभकर्म कर सके, उसे करते जाना चाहिए, बिना  फल की इच्छा के  | यदि उसने एक कोना भी उजियारा कर दिया तो वह अन्य के लिए स्वयं उदाहरण की लकीर बनेगी.....यहाँ तार्किक-तथ्यांकन की त्रुटि है |
उदाहरण -२-.. ""तितली भौरों की बरात, निकल रही है, 
                        बगिया रूपी कानन से "
.....बगिया व कानन दोनों ही समानार्थक हैं शब्द हैं अतः यहाँ पर शब्दावली -दोष है |
उदाहरण -३-.. " उषा जा न पाए, निशा आ न पाए |".....यद्यपि कवि का भाव है कि ...ज्ञान नष्ट न हो अज्ञान न फ़ैल पाए ....परन्तु विश्वमान्य सत्य के विरुद्ध शब्दावली है ...उषा के जाने पर प्रकाश आता है, सूर्य उदय होता है , निशा नहीं आती वह तो उषा के आने से पहले होती है उषा द्वारा दूर कर दी जाती है | यहाँ विश्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य की उनदेखी की गयी है |


शनिवार, 3 दिसंबर 2011

ऍफ़ डी आई पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया........डा श्याम गुप्त


                                     खुदरा बाजार में ऍफ़ डी आई  पर विरोध  पर मोंटेक सिंह अहलूवालिया  का कथन है कि.... ...मौजूदा आपूर्ति श्रृंखला में कई खामियां हैं ,किसानों को उपज का उचित दाम नहीं मिलता....आपूर्ति-तंत्र में अक्षमता , बिचौलिआपन तथा बरबादी है ...कोल्ड स्टोरेज बगैरह की व्यवस्था नहीं है.....आदि आदि....
            यदि एसा है तो यह तो आपकी सरकार की ही अक्षमता है | उसे ठीक करने के उपाय की बजाय आप विदेशियों को अपने घर में घुसा लेंगे क्या |   फिर तो राजनीति में, नेताओं के चरित्र में, मंत्रियों  के कार्यों में जाने कितनी खामियां हैं ...फिर क्यों हम भारतीय लोगों, नेताओं को ही सत्ता पर काविज़ करें , क्यों न विदेशियों को ही चुनाव में खड़ा होने का न्योता दें, क्यों न उन्हें ही नेता, मंत्री, मुख्य-मंत्री, राष्ट्रपति बनने का न्योता व मौक़ा दें ताकि देश की ये सारी समस्याओं का सरल, बिना कष्ट किये, बिना कठिनाई के  हल  होजाय |
           आप सब लोगों का क्या ख्याल है.

रविवार, 13 नवंबर 2011

छिद्रान्वेषण -----तरक्की का नया नज़रिया ....पढाई आवश्यक नहीं ......डा श्याम गुप्त ..

छिद्रान्वेषण -----


               आखिर क्या कहना चाहते हैं हम ....इस प्रकार के आलेख रूपी  समाचार से.......क्या समझाना चाहते हैं नई पीढी को...कोमल माटी -तन- मन बच्चों को  ....क्या सन्देश देना चाहते हैं......की क्लास बंक करें , पढाई बीच में छोड़कर अन्य सब्ज-बागों  में मन लगाएं ...... नियमित -व पूरी स्कूली-कालि ज की शिक्षा का कोइ लाभ नहीं है......

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण.....राष्ट्रपति...महिलायें व समाज..... डा श्याम गुप्त.....

                                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
           

बिंदु-१ .....           महिलायें  सामाजिक बुराई के खिलाफ आगे आयें ....निश्चय ही अच्छा नारा है .....परन्तु यदि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च स्तर की महिलायें  अपना नाम ... प्रतिभा  देवीसिंह पाटिल....एवं अभी हाल में ही चिकित्सा वि विद्यालय की कुलपति पद पर सुशोभित ...डा सरोज चूडामणि  गोपाल ..... अर्थात ....पति (..देवीसिंह ...व गोपाल) के नाम ....के बिना अपनी स्वतंत्र  पहचान ( आइडेंटिटी ) नहीं स्थापित कर सकती हैं तो ......हम क्या अपेक्षा रखें स्वयं महिलाओं से .?? ........क्या यह नाम -स्वरुप ...प्रेम व समर्पण के वशीभूत रखा जाता है  या पारिवारिक, परम्परा व पति के दबाव स्वरुप .....?
बिंदु-२.....               क्या माननीय राष्ट्रपति महोदया ...या हिन्दी प्रदेश के ह्रदय प्रदेश की माननीय मुख्य मंत्री  या वे सभी महान महिलायें, महिला संगठन , महिला कालेज के पदाधिकारी व छात्र-संगठन , महान पूर्व छात्राएं व महान छात्राएं .......उदघाटन पट्ट को देश की भाषा  राष्ट्र-भाषा हिन्दी में नहीं करा सकती थीं जो गुलामी की प्रतीक भाषा अंग्रेज़ी में लिखा गया |

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

छिद्रान्वेषण ------ कौन महत्वपूर्ण है ....डा श्याम गुप्त.....


  छिद्रान्वेषण------                              
------- कौन महत्वपूर्ण है आपके लिए.....अखवार के लिए ..??????


शाहरुख - करीना - सिनेमा का विज्ञापन --जिनका चित्र समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ पर पूरे पेज पर है...............


              या ..............................
  




श्री कृष्ण ----जिनका चित्र दूसरे पेज पर है ...चौथाई  पृष्ठ पर  है ......
                                                                                                                                                                                                                          

एवं .......



राउडी राठौर .....जिसका चित्र पूरे पृष्ठ पर है ......



या.....
प्रदेश  की मुख्यमंत्री ....जिनका चित्र अंदर के पेज पर .....चौथाई  पृष्ठ पर है .....

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

आज का छिद्रान्वेषण ....दीप-पर्व एवं पटाखे व आतिशबाजी और प्रदूषण ....डा श्याम गुप्त ..

              आजकल  यह ट्रेंड बन् चला है कि ज़रा सा--- तथाकथित वैज्ञानिक विचार वाला व्यक्ति, समूह , संस्था कुछ पाश्चात्य बातें पढ़ता है ..विशेषकर यदि वे हिन्दू व भारतीय संस्कारों , रीति-रिवाजों, पर्वों , विधियों के बारे में हैं तो--- तुरंत उनमें खामियां निकालने लगते हैं एवं बुराई की भांति  प्रचार करने में जुट जाते हैं | अभारतीय संस्कृति वाले लोग तो इसमें सम्मिलित होते ही हैं ..कुछ तथाकथित आधुनिक ,स्व-संस्कृति पलायनवादी लोग भी जोर-शोर से इस में लग जाते हैं |

आतिशबाजी- सिटी हाल , बाल्टीमोर-यूं एस ऐ  ( चित्र -गूगल - साभार )
        यही बात दीप-पर्व पर पटाखों, आतिशबाजी को लेकर देखी जारही है |
                     यह एक गलत धारणा है कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है ....आतिशबाजी युगों से होरही है और प्रदूषण नहीं होता था ..न हुआ ..आतिशबाजी के प्रकाश, धुंए, ऊष्मा व ध्वनि और रसायनों से ( जो वातावरण के लिए एंटी-सेप्टिक का कार्य करते हैं ) से वातावरण से कीट-पतंगे ( जो इस मौसम में अधिक होते हैं)सूक्ष्म-जीव, बेक्टीरिया-आदि नष्ट होते हैंमौसम के संधि-स्थल पर मौसम के अनियमित व्यवहार (कभी गरम-कभी नरम) को सम करते हैं
                     यही कार्य सरसों के तेल के दीपक जलाने से होता है | तेल का एंटी-सेप्टिक  प्रभाव ( यज्ञ , हवं, आहुतियाँ  व होलिका दहन आदि की भांति )  वायुमंडल में वाष्पित होकर वातावरण को इन सभी प्रकार के प्रदूषण से मुक्त करता है |  जहां मोमबत्तियाँ  व  आधुनिक विद्युत बल्ब सिर्फ प्रकाश व ऊष्मा का ही प्रभाव देते हैं ....तेल का नहीं |
                    अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने घिसी-पिटी कहानियों को दोहराते रहते हैं ..क्योंकि यह भारतीयों का/ हिंदुओं का पावन पर्व है ...???? खतरनाक व अत्यधिक आवाज व शक्ति वाले...बड़ी-बड़ी कंपनियों में बने आधुनिक शक्तिशाली पटाखों आदि को सरकार को स्वतः ही सख्ती से बंद कर देना चाहिए |
                   जहां तक सांस के रोगी की सांस की बात है वह तो सदा ही इस मौसम के संधि-स्थल पर सामान्यतया अधिक सक्रिय हो जाती है |
                    और दुर्घटनाओं की बात-- वह तो खाना खाने से, मिलावट की मिठाइयां खाने से भी होती रहती हैं तो क्या खाना खाना बंद करदेंगे | मिलावट को बंद कीजिये ..मिठाइयों को नहीं |
            क्या दुनिया भर में, दुनिया के हर देश में  प्रतिवर्ष एवं वर्ष भर होने वाले खेलों, उत्सवों व अन्य पर्वों आदि में जो आतिशबाजी होती है ... उससे प्रदूषण नहीं होता ????
                 हमें वस्तुओं व तथ्यों को सावधानी पूर्वक चयन करना चाहिए .....अनावश्यक अति- आधुनिकता व अंधविश्वासी छद्म-वैज्ञानिकता से व उसके व्यावहारिक -चलन से सावधान रहना आवश्यक है |

सोमवार, 24 अक्टूबर 2011

छिद्रान्वेषण ----सजाये मौत और अल्पसंख्यक आयोग तथा गद्दाफी की ह्त्या .....डा श्याम गुप्त

  १-सजाये मौत ----                  अल्प संख्यक आयोग के अध्यक्ष श्री हबीबुल्लाह का कथन है कि वे सजाये मौत के विरुद्ध हैं , वे उसे बर्बर युग की याद बताते हैं , वे स्वयं को बौद्ध बताते हुए वे खून्ख्खार , दुर्दम्य , ह्त्या जैसे कृत्यों के अपराधियों ,  आतंकवादियों को भी सजा के खिलाफ हैं |  मेरी समझ में नहीं आता कैसे कैसे  लोगों को आयोगों का अध्यक्ष बना दिया जाता है | जो स्वयं अल्पसंख्यक समाज से है वह तो उन्हीं के गुण गायेगा | उसे तो   आतंकवादियों में भी बौद्ध व मुस्लिम ही  नज़र आएंगे | उन्हें इन आतंकवादियों की बर्बरता संज्ञान में नहीं आती ? यदि समाज में बर्बरता का कृत्य किया जाएगा तो अपराधी के साथ भी बर्बरता होगी ही | यह सब आतंकवादियों व मुस्लिम- अपराधियों के संरक्षण का अग्रिम प्रयास है | क्या अभीतक उन्होंने कभी सजाये मौत के विरुद्ध अभियान चलाया ? अचानक अब यह सब कैसे याद आने लगा ?
                      शास्त्रों का कथन है कि  " शठे शाठ्यं समाचरेत "   एवं  साम दाम विभेद व दंड ..जो चार नीतियां है व्यष्टि व समष्टि  के अपराधों को रोकने की ...उनमें दंड एक प्रमुख नीति है .. जो दुर्दम्य व इस प्रकार के आपराधिक कृत्यों के विरुद्ध करनी चाहिए | परन्तु हबीबुल्ला जी को क्या पता शास्त्रीय तथ्य ...
                    जहां तक बौद्ध धर्म का सवाल है ...प्रसंगवश यह भी बता दिया जाय कि इसी भ्रमात्मक अहिंसा नीति के कारण बौद्ध धर्म विश्व से तिरोहित हुआ | अहिंसा जैसे दैवीय सद्गुण की किस प्रकार विकृति होती है ? बौद्ध व जैन धर्म वालों ने शास्त्रीय वाक्य के प्रथम भाग "अहिंसा परमो धर्म "  को तो अपना लिया परन्तु द्वितीय भाग  " धर्म हिंसा तथैव च .."  को भुला दिया | अर्थात धर्मार्थ ( राज्य, क़ानून, न्याय, सामाजिक के  व्यापक हित ) की गयी हिंसा , हिंसा नहीं होती अपितु आवश्यक होती है |
                   इसी भ्रामक अहिंसा वृत्ति के कारण --- जब मुसलिम आक्रमणकारियों ने गांधार (कंधार) और सिंध पर आक्रमण किया तब जनता ने अपने को 'बौद्घ' कहकर युद्घ करने से इनकार किया। मुहम्मद-बिन-कासिम ने सब प्रदेश जीता। राजा दाहिर को बंदी बनाकर मार डाला और भीषण नरसंहार किया। इस पाप की दोषी तो वहां की बौद्घ जनता थी, जो अहिंसा व्रत के कारण युद्घ से विरत रही एवं   जनता ने सम्राट का साथ देने से इनकार कर दिया|   अन्य  उदाहरण भारत की पश्चिमी सीमा पर हुए इसलामी आक्रमणों की कहानियां हैं |
         संसार के इतिहास में अनेकों बार बर्बर व्यक्तियों व जातियों ने अपने से सभ्य लोगों का विनाश कर डाला है ।  मूलतः'बर्बर मुसलिम आक्रमण ही बौद्घ मत के समूल उच्छेद का कारण बने।'
                       
                    क्या हम,  हमारी सरकार,  हबीबुल्लाह कुछ सबक लेंगे??


 २- गद्दाफी की ह्त्या---  कौन नहीं जानता कि लीबिया के शासक कर्नल मोहम्मद उमर गद्दाफी ने सत्ता में आते ही  तेल की सभी विदेशी कंपनियों को निकाल बाहर किया था जो देश का धन लूट कर बाहर लेजाती थीं एवं देश को अत्यधिक हानि सहनी पड रही थी | इससे कुछ वर्षों में ही लीबिया की अर्थ व्यवस्था तेजी से उन्नति की ओर अग्रसर हुई | इसीलिये गद्दाफी अमेरिका व योरोपीय शासकों की आँखों की किरकिरी बने हुए थे | यह राजनैतिक- कूटनीतिक चाल व राजनैतिक ह्त्या थी, जिसमें देश के ही कुछ विरोधी समूह दुश्मनों से मिल जाते हैं इसीलिये सुनियोजित योजनानुसार पहले शासक को अत्याचारी, विलासी आदि प्रचारित किया जाता है फिर उसकी ह्त्या करने के षडयंत्र ताकि अपनी कठपुतली सरकार बना कर अपना उल्लू सीधा किया जा सके |